Tuesday, September 18, 2018

आरएसएस के इस कार्यक्रम का मक़सद

मिशनरी उत्साह से भरपूर नि:स्वार्थ और समर्पित कार्यबल, परंपराओं की गहरी जड़ें, मूल्य और सिद्धांतों के साथ 'शाखा' जैसे कामकाजी तंत्र को देखते हुए आरएसएस एक ऐसी ताक़त है जिसकी मदद से राजनीतिक दल बहुमत हासिल करके अपने घोषणापत्र को सच साबित कर सकते हैं.
अभी तक आरएसएस ने ख़ुद को किसी भी राजनीतिक गतिविधि से दूर रखा है, लेकिन वह किसी भी राजनीतिक दल या किसी संगठन के साथ समाज के अच्छे काम में योगदान के लिए अपनी ताक़त को साझा करने के ख़िलाफ़ नहीं है.
समाज के एक बड़े तबके तक अपने विचार और दृष्टिकोण को साझा करने के साथ संघ का नेतृत्व लगातार विचारकों, कार्यकर्ताओं और आरएसएस विरोधी और समर्थक संगठनों के साथ बैठकें करता है.
इस संदर्भ में देखें तो आरएसएस के वर्तमान सरसंघचालक समाज के चुनिंदा वर्गों के साथ तीन दिवसीय सार्वजनिक व्याख्यान का आयोजन कर रहे हैं. यह वे वर्ग हैं जिनके विचार न केवल अहमियत रखते हैं बल्कि समाज के कल्याण के लिए एक दूरगामी परिवर्तन ला सकते हैं और बेहतर बदलाव में सक्षम हैं.
आरएसएस इस बात से बिल्कुल अवगत है कि उसकी शक्ति केवल 'शाखाओं' को बढ़ाने और वहां लोगों की उपस्थिति बढ़ाने में लगी हुई है. अभी भी आरएसएस को एक बड़े समूह तक पहुंचना बाकी है. इन बैठकों का मकसद आरएसएस को लेकर लोगों की ग़लतफ़हमियों को दूर करना और समर्थन बढ़ाना है.
(लेखक आरएसएस के वरिष्ठ सदस्य हैं और आरएसएस की अंग्रेज़ी साप्ताहिक पत्रिका 'ऑर्गनाइज़र' के पूर्व संपादक हैं.)
रोज़ाना एक एसप्रिन लेना उम्रदराज़ लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है.
दिल के दौरे के बाद अक्सर डॉक्टर एसप्रिन लेने की सलाह देते हैं क्योंकि ये दवाई खून को पतला करती है और दोबारा दिल के दौरे से बचाती है.
यह बात साबित भी हो चुकी है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद एसप्रिन से फ़ायदा होता है.
लेकिन 70 साल की उम्र पार कर चुके स्वस्थ लोगों के मामले में ऐसा नहीं है.
इस अध्ययन के मुताबिक 70 से ज़्यादा उम्र वाले स्वस्थ लोगों को इसका कोई फ़ायदा नहीं होता है. यहां तक कि इस दवाई से उनमें आंतरिक रक्तस्राव का ख़तरा भी बढ़ जाता है.
विशेषज्ञों ने इन नतीजों को बहुत महत्वपूर्ण बताया है और खुद अपना इलाज करने को लेकर आगाह किया है क्योंकि पूरी तरह से स्वस्थ लोग भी एसप्रिन खाने लगते हैं ताकि दिल के दौरे का खतरा कम किया जा सके.
ये शोध अधेड़ उम्र के लोगों पर किया गया था. इसमें अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के 19,114 लोग शामिल थे जिन्हें उस वक्त तक दिल से जुड़ी कोई बीमारी नहीं हुई थी.
इनमें से आधे लोगों को पांच साल तक रोज़ाना एसप्रिन खाने के लिए दी गई.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित तीन रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि उनमें ​न तो दिल की बीमारियों का ख़तरा कम हुआ और न ही कोई और फ़ायदा हुआ.
यहां तक कि इससे पेट में रक्तस्राव भी शुरू हो गया.
मोनाश यूनिवर्सिटी से प्रोफ़ेसर जॉन मैकनील कहते हैं, ''इस अध्ययन का मतलब ये है कि रोजाना एसप्रिन खाने वाले लाखों बुजु्र्गों को इससे कोई फायदा नहीं है और साथ ही रक्तस्राव का ख़तरा भी है.''
''यह अध्ययन उन डॉक्टर्स की भी मदद करेगा जो लंबे समय से इस उलझन में हैं कि स्वस्थ मरीजों को एसप्रिन देनी चाहिए या नहीं.''स अध्ययन में ये भी पाया गया कि कैंसर से होने वाली मौतों का खतरा बढ़ा है. हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस मामले में और जांच की जानी जरूरी है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर रॉथवेल कहते हैं कि 70 साल की उम्र तक अगर आपको दिल का दौरा नहीं पड़ा है तो इस दवाई के वाकई बहुत कम फायदे हैं.
यह अध्ययन उन लोगों पर लागू नहीं होता जो दिल की बीमारी के कारण एसप्रिन ले रहे हैं. उन्हें अपने डॉक्टर की ही सलाह माननी चाहिए.
जो लोग लंबे समय से एसप्रिन की कम मात्रा ले रहे हैं उन्हें इसे तुरंत बंद न करने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से भी समस्या हो सकती है. उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए.

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