Thursday, August 9, 2018

आदिवासियों के लिए मुख्यधारा की मीडिया की ऐसी बेरुख़ी

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के मौके पर भारत के आदिवासियों के हालात सुनने के लिए दिल्ली में मुख्यधारा का एक भी रिपोर्टर नहीं आया.
आदिवासियों को मीडियाकर्मियों की उपस्थिति के बिना ही अपना प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र ने 1994 में नौ अगस्त को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने का ऐलान किया था.
इसी मौके पर मध्य भारत के आदिवासियों ने आठ अगस्त को दिल्ली में कंस्टीच्यूशन क्लब में एक प्रेंस कॉफ्रेंस बुलाई थी लेकिन भारत की मीडिया में वंचितों की इस कदर अपेक्षा देखी गई कि आयोजकों ने मुख्यधारा के रिपोर्टरों का एक घंटे तक इंतज़ार करने के बाद कॉन्फ्रेंस शुरू किया और चंद मिनटों में ही ख़त्म कर दिया.
दिल्ली में ऑल आदिवासी दिल्ली-एनसीआर ने नौ अगस्त को 24 वें अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के मौके पर देश में आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हालात के बारे में जानकारी देने के लिए ये प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ की अध्यक्ष प्रोफेसर सोना झरिया, योजना आयोग के पूर्व सदस्य सीके तिर्की, भारत सरकार के भू वैज्ञानिक डॉक्टर अशोक बक्सला, वकील निकोलस बारला, समाज वैज्ञानिक डॉक्टर ए बेंजामिन, आदिवासी मामलों के शोधार्थी डॉक्टर विसेंट एक्का जैसे लोग मौजूद थे.
लेकिन उन्हें दो घंटे के लिए तयशुदा प्रेंस कॉन्फ्रेंस को चंद मिनटों में ही समाप्त करने के लिए बाध्य होना पड़ा. कथित तौर पर मुख्यधारा के एक भी समाचार पत्र और टेलीविजन चैनल का संवाददाता इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आया.
जबकि कंस्टीट्यूशन क्लब से चंद क़दमों की दूरी पर स्थित प्रेस कल्ब ऑफ इंडिया में चल रहे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में टेलीविजन चैनलों के 17 कैमरे मौजूद थे.
हालांकि ऑल आदिवासी दिल्ली-एनसीआर ने प्रेस क्लब में भी लगभग दस दिनों पहले इस कॉन्फ्रेंस के लिए जगह बुक कराने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें वहां उन्हें जगह नहीं मिल सकी.
आदिवासियों के लिए दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कितना मुश्किल काम है, इसकी पूरी अंतर्कथा बेहद दर्दनाक है.
कंस्टीट्यूशन क्लब में प्रेंस कॉन्फ्रेंस के आयोजन की जानकारी नब्बे मीडिया संस्थानों को भेजी गई थी.
इस प्रोग्राम के आयोजकों में से एक कुणाल ने बताया कि वे खुद भी एक टेलीविजन चैनल में ऑडियो इंजीनियर हैं और उन्होने मीडिया संस्थानों को इस कॉन्फ्रेंस के लिए ईमेल किया था. मीडिया में अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए दोस्त पत्रकारों को भी आमंत्रित किया था.
कुणाल के अनुसार आदिवासी मामलों पर लिखने वाले प्रदीप कुरीन ने भी उन्हें यह बताया था कि उन्होंने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए कई लोगों को कहा है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस इस इंतजार में भी 45 मिनट की देरी से शुरू हुई कि कुछ चैनलों के संवाददाताओं ने कहा कि वे रास्ते में हैं और जल्द ही पहुंच रहे हैं.
लेकिन इन रिपोर्टरों का रास्ता ही कॉन्फ्रेंस के ख़त्म होने तक पुरा नहीं हुआ.
भारत सरकार में वैज्ञानिक डॉक्टर अशोक बक्सला ने बताया कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब आदिवासियों की मीडिया ने उपेक्षा की है.
उन्होने दिल्ली में आदिवासियों के कई धरना, प्रदर्शनों और अन्य कार्यक्रमों की अतीत में मीडिया की उपेक्षा की दास्तां का बयां किया.
उन्होंने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि "मीडिया शायद इसीलिए हमारी तरफ़ नहीं देखता हैं क्योंकि वे आकर्षक नहीं है और मीडिया जो चाहता है हम वह उन्हें नहीं दे पाते हैं."

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